गांगुली के मन में आज भी है कसक- काश 2003 विश्व कप में साथ होते धोनी
भारतीय
टीम को 2003 विश्व कप के फाइनल
में पहुंचाने वाले कप्तान सौरव गांगुली की गिनती भारत
के महान कप्तानों में होती है. भारत को फाइनल में
ऑस्ट्रेलिया के हाथों करारी
हार का सामना करना
पड़ा था. डेढ़ दशक के बाद गांगुली
ने एक बार फिर
उस विश्व कप को याद
किया है.
अपनी
ऑटोबायोग्रफी ए सेंचुरी इज
नॉट इनफ ('A Century is Not
Enough') में विश्व कप फाइनल की
यादों को ताजा करते
हुए लिखा कि आज भी
उनके मन में एक
ऐसी आती है जो उस
वक्त के हिसाब से
धरातल पर नहीं थी.
विश्व
कप को याद करते
हुए गांगुली हमेशा सोचा करते हैं कि काश उस
टीम में महेन्द्र सिंह धोनी होते. गांगुली ने लिखा है,
'काश कि 2003 विश्व कप में धोनी
हमारे साथ होते। मुझे पता चला कि जब हम
2003 विश्व कप का फाइनल
खेल रहे थे उस समय
धोनी भारतीय रेलवे में बतौर टिकट कलेक्टर काम कर रहे थे.
अविश्वसनीय!'
विश्व
कप में न सही लेकिन
एक साल बाद गांगुली का ये सपना
पूरा हुआ धोनी उनकी कप्तानी में भारतीय टीम के सदस्य बने.
गांगुली ने अपनी किताब
में लिखा, 'मैं पिछले कई सालों से
ऐसे खिलाड़ियों पर नजर रख
रहा था जो दबाव
में भी अपना खेल
दिखा जाए. ऐसा खिलाड़ी जिनमें मैच का रुख बदलने
की क्षमता हो. महेंद्र सिंह धोनी को मैंने पहली
बार 2004 में देखा था. वह मेरे इस
विचार के हिसाब से
खेलने वाले खिलाड़ी थे. मैं पहले दिन से ही धोनी
से प्रभावित था.'
उन्होंने
आगे लिखा, 'आज मैं खुश
हूं कि मेरा आकलन
सही निकला. यह वाकई लाजवाब
है कि वह इतनी
बाधाओं को पार कर
आज इस मुकाम तक
पहुंचे हैं.' सभी जानते हैं कि धोनी की
किस्मत तब बदली जब
बतौर कप्तान गांगुली ने उन्हें बल्लेबाजी
में ऊपर भेजा. शून्य के साथ अंतरराष्ट्रीय
क्रिकेट की शुरूआत करने
वाले धोनी गांगुली के उस फैसले
पर खड़े उतरे.
धोनी
ने गांगुली की कप्तानी में
2004 में अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की
तो गांगुली ने 2008 में धोनी की कप्तानी में
करियर का अंत किया.
फिर वो पल भी
आया जब धोनी ने
नवंबर 2008 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ नागपुर
में खेला गए चौथे टेस्ट
के अंत में टीम की कमान उन्हें
सौंपी थी.
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